मरीजों को वार्ड तक पहुंचाने और ले जाने में परिजनों को करनी पड़ रही काफी मशक्कत
जबकि किसी भी अस्पताल की पहचान चिकित्सकों की चिकित्सा से होती है। जो मौके पर मरीजों को नहीं मिल पा रही है।

मरीजों को वार्ड तक पहुंचाने और ले जाने में परिजनों को करनी पड़ रही काफी मशक्कत
रीवा। श्याम शाह चिकित्सा एवं महाविद्यालय के अधीन संचालित संजय गांधी अस्पताल में मरीजों को वैसे तो अनेकों तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जहां ओपीडी से लेकर आईपीडी तक वरिष्ठ डॉक्टरों का परामर्श मरीजों को नहीं मिल पा रहा।
जबकि किसी भी अस्पताल की पहचान चिकित्सकों की चिकित्सा से होती है। जो मौके पर मरीजों को नहीं मिल पा रही है। सिर्फ जुड़ा, ईलाज के भरोसे ही मरीजों का जीवन सौभाग्य से बच रहा है। वहीं इसके अलावा बात करें तो मरीजों को यहां पर सरकारी सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ रहा है। ना दवाईयां मिल पा रही है और न ही जांच सुविधा वहीं मरीजों को मरीजों ऊपरी मंजिलों के वार्ड तक पहुंचाने के लिए लिफ्ट सुविधा तक ओवरलोड होने से मौके पर नहीं मिल रही। जानकारी अनुसार संजय गांधी अस्पताल में वार्ड तक लाने और ले जाने के लिए यहां पर गिनती के लिए 7 लिफ्ट लगी है लेकिन रख रखाव के चलते वर्तमान में 3 लिफ्ट से ही सेवाएं शुरू है। उसमें 1 लिफ्ट तो अस्पताल स्टाफ के लिए आरक्षित है। मरीजों एवं परिजनों को वार्ड तक लाने और ले जाने के लिए केवल 2 ही लिफ्ट की सेवाएं मिल पा रही हैं जो दिन में किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह ओवरलोड रहती है। जबकि संजय गांधी अस्पताल में संभाग भर से मरीजों का आए दिन ताता लगा रहता है। जिसमें कुछ गंभीर रोगी भी शामिल होते हैं, जिन्हें वार्ड तक पहुंचाने स्ट्रेचर मैं पड़े मरीजों को जिन्हें लिफ्ट में जगह ही नहीं मिल पाती। जिन्हें भी कुछ देर तक इंतजार करना पड़ता है जबकि उन्हें इलाज की तुरंत जरूरत होती है। लेकिन 2 लिफ्ट के चालू होने से रोगियों को वार्ड तक पहुंचने में इंतजार करना पड़ता है। जबकि अस्पताल में वेडों की संख्या अनुसार 7 लिफ्ट लगवाई गई थी ताकि मरीजों को लाने और ले जाने में समय पर सुविधा मिल सके। इसके बावजूद भी मेडिकल कॉलेज डीन डॉक्टर सुनील अग्रवाल की अदूरदर्शिता के चलते अस्पताल में मरीजों के अनुपात में अब भी 4 लिफ्ट बंद पड़ी हुई है। जिन्हें अब तक चालू नहीं कराया जा सका अगर ऐसे ही हालात रहे तो जिन लिफ्टों से सेवाएं शुरू है। मरीजों का ज्यादा दबाव होने के चलते वह बंद हो सकती हैं? जिसका सिर्फ दोषी मेडिकल प्रबंधन होगा और पीड़ित दुआ की बजाय श्राप देते नजर आयेंगे।




