"जंगल विभाग के कर्मचारी? मऊगंज के सीतापुर में पत्रकार से बदसलूकी, कार्रवाई की मांग तेज़"**
मऊगंज जिले के ग्राम पंचायत सीतापुर और उसके आसपास के पहाड़ी इलाकों में उस वक्त हलचल मच गई जब वन विभाग का एक छोटा कर्मचारी, दिनेश कुमार पटेल, पत्रकार दीपक गुप्ता पर भड़क उठा।

**”जंगल विभाग के कर्मचारी? मऊगंज के सीतापुर में पत्रकार से बदसलूकी, कार्रवाई की मांग तेज़”**
**मऊगंज (सीतापुर)।** मऊगंज जिले के ग्राम पंचायत सीतापुर और उसके आसपास के पहाड़ी इलाकों में उस वक्त हलचल मच गई जब वन विभाग का एक छोटा कर्मचारी, दिनेश कुमार पटेल, पत्रकार दीपक गुप्ता पर भड़क उठा।
मामला तब सामने आया जब दीपक गुप्ता ने क्षेत्र में ट्रैक्टरों की संदिग्ध आवाजाही और वन विभाग की लापरवाही को उजागर किया। खबर चलने के बाद फॉरेस्ट एसडीओ और अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे, लेकिन वहां जो हुआ, उसने चौथे स्तंभ का अपमान कर दिया।
जैसे ही अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और बातचीत शुरू हुई, वैसे ही वन विभाग का वही कर्मचारी दिनेश पटेल पत्रकार दीपक पर भड़क उठा और तैश में आकर कहने लगा – “ले लो मेरी नौकरी!” यह बात कैमरे में कैद हो गई और अब यह पूरे जिले में चर्चा का विषय बन चुकी है। सूत्रों के अनुसार, दिनेश कुमार पटेल बीते 4 वर्षों से इस क्षेत्र में पदस्थ है और उसका सीधा संबंध विभाग के कुछ अधिकारियों और कथित ‘संगठित रैकेट’ से जुड़ा हुआ है। ट्रैक्टरों की आवाजाही से लेकर जंगल कटाई और हर प्रकार की संदिग्ध गतिविधियों में इस कर्मचारी की भूमिका सामने आ रही है। यही नहीं, बताया जा रहा है कि वह दो मोबाइल नंबरों का उपयोग करता है, और यदि 15 दिन की कॉल डिटेल सार्वजनिक कर दी जाए तो पूरे रैकेट का पर्दाफाश हो सकता है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो मऊगंज से जब भी कोई अधिकारी क्षेत्र में आता था, उससे पहले ही सूचना गांव में बैठे दलालों तक पहुंच जाती थी, जिससे संभावित कार्रवाई टल जाती थी। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब मौके पर 7-8 कर्मचारी और थे, तो दिनेश पटेल को ही पत्रकार की उपस्थिति से “मिर्ची” क्यों लगी? क्या वह डर गया कि उसका खेल उजागर न हो जाए? क्या यह पत्रकारों को डराने की कोशिश थी? और सबसे बड़ा सवाल – क्या अब भी इस पर कोई ठोस कार्रवाई होगी? पत्रकार दीपक गुप्ता ने वरिष्ठ अधिकारियों और मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव से आग्रह किया है कि ऐसे भ्रष्ट और असंवेदनशील कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि वन विभाग की छवि बची रह सके और पत्रकारों को उनका सम्मान मिले। देश का चौथा स्तंभ यदि ऐसे मौकों पर अपमानित होगा, तो आम जनता की आवाज़ कौन उठाएगा? अब समय आ गया है कि सरकार और प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले।





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