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रीवा के सुजीत द्विवेदी विवेकानंद नशामुक्ति पुरस्कार से सम्मानित, CM ने किया सम्मान

रीवा के सुजीत द्विवेदी को नशामुक्ति के लिए काम करने पर विवेकानंद नशामुक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उन्हें 1 लाख रुपये का पुरस्कार दिया।

रीवा के सुजीत द्विवेदी विवेकानंद नशामुक्ति पुरस्कार से सम्मानित, CM ने किया सम्मान

रीवा के सुजीत द्विवेदी को नशामुक्ति के लिए काम करने पर विवेकानंद नशामुक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उन्हें 1 लाख रुपये का पुरस्कार दिया। 

रीवा के सुजीत द्विवेदी को मिला पहला विवेकानंद नशामुक्ति पुरस्कार: मध्यप्रदेश को नशामुक्त बनाने के लिए 22 सालों से काम कर रहे रीवा के सुजीत द्विवेदी को विवेकानंद नशामुक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार इस साल से ही शुरू हुआ है और सुजीत इसके पहले विजेता बने हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बुधवार को भोपाल में हुए एक कार्यक्रम में उन्हें प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया। सुजीत पिछले दो दशक से ज्यादा समय से युवाओं को नशे से बचाने का अभियान चला रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने अपने कपड़े तक त्याग दिए हैं और हमेशा सफेद लुंगी में ही दिखते हैं।

बूट पॉलिश करके दिया नशा छोड़ने का संदेश

सुजीत द्विवेदी अपने नशामुक्ति अभियान को अलग-अलग तरीकों से चलाते हैं। कुछ समय पहले वह रीवा से दिल्ली तक जागरूकता यात्रा पर गए थे। इस यात्रा के दौरान वह लोगों की बूट पॉलिश करते थे और पैसों के बदले उनसे नशा छोड़ने का वादा लेते थे। इस अनोखे तरीके से उन्होंने कई युवाओं को नशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया। सुजीत बताते हैं कि शुरुआत में लोग उनका मजाक उड़ाते थे, लेकिन अब वही लोग उन्हें सम्मान के साथ अपने कार्यक्रमों में बुलाते हैं।

परिवार का पूरा साथ मिला

इस अभियान में सुजीत को उनके परिवार का पूरा समर्थन मिला। उनकी पत्नी और बच्चों ने हर आंदोलन में उनका साथ दिया। सुजीत अपने जीवन के हर सुख-दुःख में नशामुक्ति की ही बात करते हैं। बेटी की शादी में उन्होंने पूरी बारात को नशा छोड़ने की शपथ दिलाई और जब उनकी मां का निधन हुआ तो अंतिम संस्कार में आए लोगों से भी यही संकल्प लिया।

क्यों शुरू किया नशामुक्ति अभियान?

सुजीत द्विवेदी बताते हैं कि पहले उनका ढाबे का अच्छा-खासा कारोबार था। वहां पर कई पढ़े-लिखे युवा, जिनमें इंजीनियरिंग और मेडिकल के छात्र भी शामिल थे, नशा करते थे। उन्हें देखकर सुजीत का मन दुखी हुआ कि माता-पिता जिन बच्चों के लिए सपने देखते हैं, वे खुद को नशे में बर्बाद कर रहे हैं। इसी वजह से उन्होंने अपना कारोबार बंद कर दिया और साल 2003 में नशामुक्ति का अभियान शुरू किया। वह बताते हैं कि रीवा में मेडिकल नशा चरम पर है और उन्होंने लोगों तक संदेश पहुंचाने के लिए कई सालों तक कफ सिरप की खाली शीशियां इकट्ठा कीं।

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