*मऊगंज में पद का घमंड या भ्रष्टाचार की जड़ें? – जब सीईओ की संवेदनहीनता गौमाता के सम्मान से बड़ी हो गई!*
मऊगंज जनपद में एक बेहद शर्मनाक और चिंताजनक तस्वीर सामने आई है,

*मऊगंज में पद का घमंड या भ्रष्टाचार की जड़ें? – जब सीईओ की संवेदनहीनता गौमाता के सम्मान से बड़ी हो गई!*
मऊगंज जनपद में एक बेहद शर्मनाक और चिंताजनक तस्वीर सामने आई है,
जहां जनप्रतिनिधियों और अफसरों के घमंड ने इंसानियत और संवेदनाओं को रौंद कर रख दिया। मामला एक गौमाता की मृत्यु के बाद भंडारे के आयोजन से जुड़ा है। पत्रकार दीपक गुप्ता ने जब व्यक्तिगत रूप से जनपद सीईओ से हाथ जोड़कर निवेदन किया ग्राम पंचायत सीतापुर के नैकिनिया माता मंदिर कि मृत गौमाता के शव को मौके से हटवाया जाए ताकि मंदिर में भंडारे की व्यवस्था की जा सके, तब वहां जो प्रतिक्रिया मिली, वह न केवल अमानवीय थी, बल्कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा कर गई। जनपद के जिम्मेदार अधिकारी, जिनका कर्तव्य था कि वे स्वच्छता और सामाजिक भावनाओं का सम्मान करें, उन्होंने मदद करना तो दूर, पत्रकार की बातों को उपेक्षित कर दिया। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वे अपने पद के घमंड में इतने अंधे हो गए हों कि उन्हें न गाय माता की पवित्रता का ध्यान रहा, न श्रद्धालुओं की भावनाओं का। यह वही मऊगंज है जहां कभी प्रशासनिक अनुशासन और जनसेवा की मिसाल दी जाती थी। लेकिन आज, जब राम कुशल जैसे वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश भी हवा में उड़ाए जा रहे हैं, तो सवाल उठना लाजमी है – क्या अब मऊगंज में सीईओ जैसे पद पर बैठे लोग खुद को मुख्यमंत्री से भी ऊपर समझने लगे हैं? जनता का गुस्सा भी साफ झलक रहा है। लोग कह रहे हैं कि ये अधिकारी अब जनसेवक नहीं, “घमंडसेवक” बन गए हैं। जिस प्रकार से भ्रष्टाचार की जड़ें यहां फैली हुई हैं और जिन नेताओं का वरदहस्त इनके ऊपर है, वह इस पूरे तंत्र की पोल खोलता है। अगर यही रुख रहा, तो मऊगंज में जवाबदेही नाम की चीज नहीं बचेगी। सोचिए, अगर एक पत्रकार को बार-बार हाथ जोड़कर कहना पड़े, तब भी प्रशासन अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता, तो आम जनता के लिए न्याय और सम्मान की उम्मीद करना केवल सपना बन कर रह जाएगा। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता मिशन की खुली अवहेलना की जा रही हो, तब यह प्रश्न उठता है कि ऐसे अफसरों को समर्थन देने वाले खुद कितने जवाबदेह हैं?
अब सवाल यह नहीं है कि एक शव क्यों नहीं हटाया गया। सवाल यह है कि मऊगंज में प्रशासन की आत्मा मर चुकी है या नहीं?




