संविधान हत्या और संविधान बचाने की लड़ाई के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले लोग उस दर्द को नहीं समझेंगे
आज नागौद तहसील के द्वारी के लोग महसूस कर रहे हैं।

और वो दम तोड़ गई
आजादी के नाम पर तमाम तिरंगा यात्रा निकालने वाले लोग, ऐतिहासिक स्थलों पर आजादी के तराने गाने वाले लोग, संविधान हत्या और संविधान बचाने की लड़ाई के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले लोग उस दर्द को नहीं समझेंगे
जो आज नागौद तहसील के द्वारी के लोग महसूस कर रहे हैं। सांत्वना की आड़ में वीडियो रील डालने वाले जनप्रतिनिधि भी उस मौत की कीमत नहीं समझ सकते, क्योंकि ये सांत्वना राजनीतिक दिखावा है। इस दर्द को मीसा बंदियों की औलादें भी नहीं समझेंगी जो स्वर्गीय पुरखों के नाम पर सूचीबद्ध होकर सरकारी मलहम लगा रहे है। क्योंकि इन सरकारी दामादों ने कभी इस आजादी की अंधेरी दरारों को देखने की जहमत ही नहीं उठाई।
आजाद भारत के 78 साल बाद भी एक महिला इस लिए दम तोड़ देती है, क्योंकि रोड नहीं होने से समय पर उसे अस्पताल तक नहीं पहुंचाया जा सका। करोड़ो रुपए अमेरिका जैसी सड़क अपने यहां बताने के नाम पर खर्च करने वाले अगर कुछ लाख भी यहां लगा देते तो शायद वो जिंदा होती।
पहला दोषी तो वो सरपंच है जिसे लोगों ने अपने गांव के भले के लिए चुना था। दूसरा दोषी सचिव है जो गांव की कार्य योजना में इस रोड को शामिल नहीं करवा सका। इसके बाद दोषियों की एक श्रृंखला ही है ऊपर अधिकारियों की। लेकिन जवाबदेही और जिम्मेदारी तो आपकी है राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी जी। क्योंकि आप शासन हो। नीति नियंता हो आज के। 24 घंटे आगे पीछे लाल हरी झंडी लगी गाड़ियों के बीच चलती हैं, और ये मौत आपकी विधानसभा क्षेत्र में हुई है।
सवाल है आपसे क्या इस मौत की कीमत पर गांव वालों को अपनी सड़क आप दिलवा पाएंगी? या सड़क के लिए
#नागौद तहसील
#आजाद भारत





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