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इतिहास बना रीवा कोर्ट का फैसला फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में 3 पत्रकार बाइज्जत बरी,पुलिस की मनमानी को करारा जवाब

रीवा की धरती पर न्याय का नया अध्याय लिखा गया

 

इतिहास बना रीवा कोर्ट का फैसला फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में 3 पत्रकार बाइज्जत बरी,पुलिस की मनमानी को करारा जवाब

इस पूरे मामले की पैरवी अधिवक्ता धीरेंद्र नाथ चतुर्वेदी आनंद सिंह, अर्पित पांडेय व उनकी जूनियर टीम ने की थी

रीवा जिले के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में बीते 21 मार्च 2022 को मारपीट की घटना की खबर रीवा के पत्रकारों द्वारा समाचार पत्र में प्रकाशित की गई थी जिस बात की रंजिश को रखते हुए महिला द्वारा पत्रकरो के खिलाफ सिविल लाइन थाने में फर्जी एफ़ आई आर दर्ज कराई गई थी रीवा न्यायलय के द्वारा पत्रकार अमर मिश्रा , उमेश सिंह और प्रद्युम्न शुक्ला को 12 जुलाई 2025 को दोषमुक्त हुए

 

रीवा की धरती पर न्याय का नया अध्याय लिखा गया है 23 मई 2022 को सिविल लाइन थाने में, 7 फरवरी 2022 की एक मनगढ़ंत घटना को आधार बनाकर, जिले के तीन निर्भीक पत्रकारों – अमर मिश्रा, प्रदुम्न शुक्ला, और उमेश सिंह – के खिलाफ दर्ज किए गए फर्जी गैंगरेप और पॉक्सो (POCSO) मामले में, रीवा न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्याय के इस युद्ध में, सत्य की विजय हुई और तीनों पत्रकार सभी आरोपों से पूर्णतः दोषमुक्त करार दिए गए! यह फैसला न केवल इन पत्रकारों के लिए बड़ी राहत है, बल्कि पुलिस-प्रशासन की मनमानी और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई पर भी एक करारा तमाचा है।

तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और थाना प्रभारी की भूमिका पर सवाल

यह मामला उस समय रीवा जिले में चर्चा का विषय बन गया था, जब तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन और सिविल लाइन थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी हितेंद्र नाथ शर्मा के कार्यकाल में यह चौंकाने वाला अपराध क्र. 258/22 , धारा 376 (2) (n) 450,506 भा . दा. वी. का फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया था। आरोप ऐसे गंभीर थे, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को तबाह करने के लिए काफी थे। पुलिस प्रशासन द्वारा पॉक्सो जैसे संवेदनशील कानून का दुरुपयोग कर, इन पत्रकारों को फंसाने का यह प्रयास पुलिस की कार्यप्रणाली और उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

यह देखे : https://youtu.be/vS3Dwrm02M4 रीवा की धरती पर न्याय का नया अध्याय लिखा गया

न्यायपालिका पर विश्वास और सत्य की विजय

लेकिन इन पत्रकारों ने हार नहीं मानी।उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया पर पूर्ण विश्वास रखा और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए हर संभव प्रयास किया। न्यायालय में चली लंबी सुनवाई के दौरान, एक-एक करके पुलिस द्वारा गढ़े गए झूठ की परतें खुलने लगीं। सबूतों के अभाव और पुलिस की जांच में गंभीर खामियों ने यह साबित कर दिया कि यह मामला सुनियोजित तरीके से इन पत्रकारों को फंसाने के लिए तैयार किया गया था। आखिरकार, माननीय न्यायालय ने सभी तथ्यों और साक्ष्यों पर गहन विचार करने के बाद, तीनों पत्रकारों को दोषमुक्त करार दिया फर्जी मामले में फंसे तीनों पत्रकारो की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र नाथ चतुर्वेदी आनंद सिंह, अर्पित पांडेय व उनकी जूनियर टीम ने पैरवी की थी इन्होंने तीनों पत्रकारों को विजय दिलाई और तीनों पत्रकार 12 जुलाई 2025 को दोष मुक्त साबित हुए।

यह फैसला दिखाता है कि भले ही सत्ता कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, न्याय की डगर पर सत्य की ही जीत होती है। यह उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर निर्दोषों को फंसाने का प्रयास करते हैं। अमर मिश्रा( हरित प्रवाह समाचार पत्र ,सम्पादक) , प्रदुम्न शुक्ला और उमेश सिंह ने इस कठिन दौर में जिस धैर्य और साहस का परिचय दिया, वह वास्तव में प्रेरणादायक है।

रीवा के न्यायिक इतिहास में मील का पत्थर

रीवा कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल इन तीन पत्रकारों की बेगुनाही का प्रमाण है, बल्कि यह रीवा जिले के न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर भी है। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि न्यायपालिका आज भी आम आदमी के लिए आशा की किरण है और मीडिया की स्वतंत्रता पर हुए इस हमले को उसने विफल कर दिया। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में पुलिस प्रशासन ऐसी दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई से बचेगा और कानून का सम्मान करेगा।

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