रीवा डूबता रहा… विकाश छोड़ रीवा के नेता ठहाके लगाते रहे!
क्या आपके नेता अब सिर्फ अभिनेता बनकर रह गए हैं?

रीवा डूबता रहा… विकाश छोड़ रीवा के नेता ठहाके लगाते रहे!
क्या आपके नेता अब सिर्फ अभिनेता बनकर रह गए हैं?
क्या जनता का दर्द सिर्फ भाषणों तक सीमित है?
इस आपदा ने एक बार फिर बता दिया कि कुर्सी हो तो मौज है, चाहे जनता चिता में क्यों न बैठी हो। इस बार रीवा की जनता ने सब कुछ देख लिया है – चेहरे, भाव, हंसी और संवेदनहीनता।
अब फैसला जनता को करना है —
नेता चाहिए या नाटककार?
सेवक चाहिए या सेलिब्रिटी?
रीवा का पानी उतर जाएगा, लेकिन इन नेताओं की असलियत की परतें अब बह चुकी हैं।
विगत दिवस जब रीवा जलमग्न था, लोग बाढ़ के पानी में जीवन और मौत के बीच जूझ रहे थे, उसी समय शहर के कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम में जश्न का माहौल था। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल की मौजूदगी में “शान-ए-विंध्य” सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जहां देश के मशहूर हास्य कलाकार एहसान कुरैशी मंच पर ठहाके बिखेर रहे थे, वहीं दर्शकदीर्घा में बैठे नेता तालियों और मुस्कान के साथ इस तमाशे का लुत्फ़ उठा रहे थे।
इस रंगारंग कार्यक्रम में विंध्य क्षेत्र के कलाकारों को सम्मानित किया गया। मंच से भाषण दिए गए, प्रेरणा की बातें हुईं, लेकिन कोई यह नहीं बोला कि शहर की सड़कों पर नावें क्यों चल रही हैं? क्यों लोग रातें छतों पर बिता रहे हैं? क्यों बच्चे और बुजुर्ग राशन-पानी के लिए तरस रहे हैं?
सांसद जनार्दन मिश्रा, नगर निगम अध्यक्ष व्यंकटेश पाण्डेय सहित तमाम स्थानीय जनप्रतिनिधि मंच पर मौजूद थे। सवाल यह है कि जब जनता त्राहिमाम कर रही थी, उस वक्त नेताओं को ये जश्न क्यों जरूरी लगा?
रीवा की जनता बाढ़ में फंसी थी, कई घरों में पानी भर चुका था, सैकड़ों लोग रेस्क्यू की बाट जोह रहे थे। लेकिन नेता ऑडिटोरियम में जश्न मना रहे थे, ठहाके लगा रहे थे, कैमरे के सामने मुस्कुरा रहे थे। यही है “जनसेवा”?




